विश्व महिला दिवस: महिलाओं की भूमिका और समाज में उनकी स्थिति

by The_UnmuteHindi
महिलाओं का योगदान

विश्व महिला दिवस: विश्व महिला दिवस की शुरुआत 1909 में अमेरिका से हुई थी, जब महिलाओं ने एक रैली आयोजित की थी। इस रैली में महिलाओं ने अपने अधिकारों की मांग की थी, जैसे वोट डालने का अधिकार, कामकाजी घंटों की सीमा और बेहतर वेतन की मांग। 1975 में संयुक्त राष्ट्र ने इस दिन को आधिकारिक रूप से मान्यता दी, और तब से यह दिवस हर साल महिलाओं के अधिकारों, उनके योगदान और उनके सामने आने वाली समस्याओं पर ध्यान आकर्षित करने के लिए मनाया जाता है।

महिलाओं का समाज में योगदान और साक्षरता दर

किसी भी समाज की प्रगति इस बात पर निर्भर करती है कि उस समाज में महिलाओं की क्या स्थिति है और उनका शिक्षा स्तर कितना उच्च है। एक शिक्षित और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक महिला अपने परिवार और बच्चों की बेहतर परवरिश कर सकती है। भारत में महिला साक्षरता दर 2011 में 58% थी, जबकि 2023 में यह बढ़कर 70.4% हो गई है। खासकर केरल राज्य में महिलाओं की साक्षरता दर 92% है, जबकि बिहार में यह 73.9% है। यह फर्क न केवल शिक्षा के स्तर को दर्शाता है, बल्कि यह महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक और मानसिक स्थिति को भी उजागर करता है। उच्च साक्षरता वाले देशों में महिलाएं अधिक खुशहाल और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होती हैं।

परिवार की आय में महिलाओं का योगदान

हमारे समाज में पुरुषों का योगदान पारिवारिक आय में 82% है, जबकि महिलाओं का योगदान 18% है। यह सामाजिक ढांचा प्राचीन काल से ऐसा ही रहा है, जिसमें पुरुषों को बाहर काम करने और महिलाओं को घर संभालने का जिम्मा सौंपा गया। हालांकि, समय के साथ यह रिवाज बदलने लगा है। जब से महिलाओं को शिक्षा के अवसर मिलने लगे हैं, उन्होंने पुरुषों से भी अधिक अपनी काबिलियत साबित की है। महिलाओं ने न केवल घर के कामकाज में, बल्कि रोजगार के क्षेत्र में भी पुरुषों के बराबर काम किया है।

महिलाओं को उनके हक से वंचित क्यों रखा गया?

महिलाओं को शारीरिक रूप से कमजोर और पुरुषों से कमतर समझा जाता है, लेकिन जब से उन्हें शिक्षा और कार्य में समान अवसर मिले हैं, उन्होंने यह सिद्ध कर दिया है कि वे किसी भी रूप में पुरुषों से कम नहीं हैं। हालांकि, पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को अब भी उनका हक पूरी तरह से नहीं मिला है। संविधान के अनुसार, महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार मिलते हैं, और सुप्रीम कोर्ट भी समान काम के लिए समान वेतन की वकालत करता है। फिर भी, महिलाओं को प्राइवेट सेक्टर में पुरुषों के मुकाबले 60% से 73% तक कम वेतन दिया जाता है। इसका कारण यह है कि महिलाओं के काम को कम आंका जाता है और उन्हें शारीरिक रूप से कमजोर माना जाता है, खासकर दिहाड़ी मजदूरी और फैक्ट्रियों में काम करने वाली महिलाओं के साथ यह भेदभाव और भी बढ़ जाता है।

घरेलू हिंसा: महिलाओं की एक बड़ी समस्या

भारत में 32% विवाहित महिलाएं कभी न कभी घरेलू हिंसा का शिकार हुई हैं, चाहे वह शारीरिक, मानसिक या सामाजिक हो। बिहार राज्य में महिलाओं के साथ सबसे अधिक 59% घरेलू हिंसा होती है, जबकि केरल में यह दर 9.9% है। घरेलू हिंसा के कारणों में गरीबी, आर्थिक असमानता, शराब या नशे की लत, रिश्तों में अस्थिरता, पुरुष प्रधान सोच, लड़कों को अधिक तरजीह देना, महिलाओं की उच्च शिक्षा की कमी और अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता की कमी शामिल हैं।

घरेलू हिंसा को रोकने के उपाय

घरेलू हिंसा को रोकने के लिए महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना बहुत जरूरी है। महिलाओं को यह समझने की आवश्यकता है कि “मेरी तो किस्मत में यही लिखा है, और इसे बदला नहीं जा सकता” जैसी मानसिकता से बाहर निकलना होगा। बेहतर रिश्ते बनाने के लिए दोनों, पुरुष और महिलाएं, एक-दूसरे के अधिकारों का सम्मान करें और एक दूसरे के आदतों और परिवार के सदस्यों की कद्र करें। हमें अपने बच्चों, खासकर लड़कों को आदर्श पुरुष बनाने की कोशिश करनी चाहिए ताकि वे बड़े होकर महिलाओं का सम्मान करना सीख सकें।

समाज में सकारात्मक बदलाव के लिए कदम

अगर मां-बाप अपने घर में लड़ते समय गालियां निकालते हैं या शराब का सेवन करते हैं, तो बच्चों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह व्यवहार बच्चों में सामान्य लगने लगता है और भविष्य में वे भी यही आदतें अपनाते हैं। समाज में शराब और गालियों की आदत को पुरुषों की मर्दानगी का हिस्सा मान लिया गया है, लेकिन यह मानसिक कमजोरी को दर्शाता है।

महिलाओं की समाज में और अधिक हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए हमें उनकी उच्च शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए, उन्हें बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए, और उन्हें कामकाजी स्थानों पर सुरक्षित महसूस कराना चाहिए। महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए रोजगार के अवसर और आसान लोन की सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए। इसके अलावा, महिलाओं को भावनात्मक समर्थन की भी जरूरत होती है, क्योंकि हार्मोनल उतार-चढ़ाव उनकी सेहत और कार्यकुशलता पर प्रभाव डाल सकते हैं। अगर उन्हें घर में मजबूत समर्थन मिले, तो वे किसी भी काम में पुरुषों से पीछे नहीं रहेंगी।

डॉक्टर वरिंदर कुमार,

सुनाम ऊधम सिंह वाला

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