Pushkar Camel Festival: रेगिस्तान के संरक्षक राइका जनजाति की गौरवगाथा

by The_UnmuteHindi
Pushkar Camel Festival

Pushkar Camel Festival: राजस्थान की रेत पर हर साल एक ऐसा भव्य आयोजन होता है, जो अपनी सांस्कृतिक विरासत, व्यापारिक परंपराओं और जीवंत रंगों से दुनिया भर के सैलानियों को आकर्षित करता है। यह है पुष्कर ऊँट महोत्सव, जहाँ सिर्फ ऊँटों की खरीद-फरोख्त नहीं होती, बल्कि राजस्थान की खानाबदोश राइका जनजाति की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं की झलक भी मिलती है। द अनम्यूट चैनल पर दिखाई गई गुरनीत कौर की आकर्षक फिल्म इन उल्लेखनीय लोगों के जीवन की एक मार्मिक झलक पेश करती है, जो पीढ़ियों से इस त्यौहार का अभिन्न अंग रहे हैं। आइए जानते हैं इस महोत्सव और इसके मूल में बसे राइका समुदाय की अनूठी दुनिया के बारे में।

राइका जनजाति: राजस्थान के रेगिस्तान के संरक्षक

राइका जनजाति, जिसे रेबारी या देवासी भी कहा जाता है, सदियों से राजस्थान और गुजरात के रेगिस्तानी इलाकों में ऊँटों के पालन-पोषण और व्यापार से जुड़ी हुई है। इनका नाम संस्कृत के “राजकुला” शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है “शाही जनजाति”। राइका समुदाय ऊँटों के विशेषज्ञ चरवाहे और व्यापारी माने जाते हैं। इनकी पहचान उनके पारंपरिक लाल और सफेद रंग के साफे, लंबी मूंछें और राजसी अंदाज से होती है।

राइका और ऊँट: एक पवित्र रिश्ता

राइका जनजाति ऊँटों को सिर्फ एक व्यवसाय का हिस्सा नहीं, बल्कि अपने परिवार का सदस्य मानती है। उनकी मान्यताओं के अनुसार, ऊँट भगवान शिव द्वारा उन्हें वरदान के रूप में दिए गए थे, इसलिए वे इनकी देखभाल को अपना पवित्र कर्तव्य मानते हैं। ऊँटों की नस्ल, खान-पान और सेहत पर विशेष ध्यान दिया जाता है ताकि वे पुष्कर मेले में उच्चतम कीमत प्राप्त कर सकें।

Pushkar Camel Festival: परंपरा, व्यापार और सांस्कृतिक रंगों का संगम

पुष्कर, जो अपनी प्रसिद्ध ब्रह्मा मंदिर और पवित्र सरोवर के लिए जाना जाता है, हर साल कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर एक भव्य ऊँट मेले की मेजबानी करता है। यह सिर्फ ऊँटों की खरीद-फरोख्त का केंद्र नहीं, बल्कि राजस्थानी लोक संस्कृति, संगीत, नृत्य, कला और पारंपरिक खेलों का एक अनूठा संगम भी है।

Pushkar Camel Festival: कैसे हुई पुष्कर ऊँट मेले की शुरुआत?

इस मेले की शुरुआत 14वीं शताब्दी में एक व्यापारिक आयोजन के रूप में हुई थी, जहाँ ऊँट पालक अपने ऊँटों को बेचने और खरीदने के लिए इकट्ठा होते थे। समय के साथ, यह एक भव्य सांस्कृतिक उत्सव में बदल गया, जिसमें आज हजारों ऊँट, घोड़े और मवेशी लाए जाते हैं।

Pushkar Camel Festival: पुष्कर ऊँट महोत्सव में क्या है खास?

1. ऊँटों की भव्य परेड और प्रतियोगिताएँ
पुष्कर मेले की सबसे रोमांचक झलक ऊँटों की शान दिखाने वाली परेड होती है। सजाए गए ऊँटों की सुंदरता और उनकी चाल को देखने के लिए हजारों लोग यहाँ उमड़ते हैं। ऊँट नृत्य, ऊँट दौड़ और ऊँट श्रृंगार जैसी प्रतियोगिताएँ इस आयोजन को और भी आकर्षक बनाती हैं।

2. राइका जनजाति का पारंपरिक संगीत और नृत्य
राइका जनजाति के कलाकार पारंपरिक कालबेलिया, गेर और घूमर नृत्य प्रस्तुत करते हैं। ढोल, सारंगी और इकतारा की धुनों पर लोकगीत गाए जाते हैं, जो रेगिस्तान की कहानियाँ बयां करते हैं।

3. पारंपरिक हस्तशिल्प और बाजार
पुष्कर मेले में राजस्थान के बेहतरीन हस्तशिल्प, आभूषण, रंगीन पोशाकें और पारंपरिक सजावटी वस्तुएँ उपलब्ध होती हैं। यह व्यापारियों और खरीदारों के लिए एक स्वर्ग की तरह है।

4. पुष्कर सरोवर में स्नान और ब्रह्मा मंदिर की यात्रा
धार्मिक दृष्टि से यह समय अत्यंत पवित्र माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन हज़ारों श्रद्धालु पुष्कर झील में स्नान कर पुण्य अर्जित करते हैं और ब्रह्मा मंदिर के दर्शन करते हैं।

राइका जनजाति के सामने चुनौतियाँ

हालांकि पुष्कर ऊँट महोत्सव राइका जनजाति के लिए सबसे महत्वपूर्ण अवसरों में से एक है, लेकिन बदलते समय के साथ उनकी परंपराएँ और आजीविका संकट में है। ऊँटों की घटती संख्या, शहरीकरण और आधुनिक कृषि तकनीकों के कारण उनके जीवन पर प्रभाव पड़ा है। कई राइका परिवार अब अपने पारंपरिक व्यवसाय को छोड़कर अन्य नौकरियों की तलाश कर रहे हैं।

संरक्षण और समर्थन की आवश्यकता

राइका जनजाति की समृद्ध विरासत को बचाने के लिए सरकार और सामाजिक संगठनों द्वारा कुछ प्रयास किए जा रहे हैं, जैसे:
– ऊँट संरक्षण के लिए विशेष कार्यक्रमों की शुरुआत।
– राइका समुदाय को उनके पारंपरिक ऊँट पालन के लिए प्रोत्साहन देना।
– स्थानीय हस्तशिल्प और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए विशेष मेले और प्रदर्शनियाँ।

Pushkar Camel Festival: सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने का संकल्प

पुष्कर ऊँट महोत्सव न केवल ऊँटों का व्यापारिक केंद्र है, बल्कि यह राइका जनजाति की संस्कृति, कला और परंपराओं का भी एक महत्वपूर्ण मंच है। गुरनीत कौर की फिल्म “द अनम्यूट चैनल” इस समुदाय के संघर्षों और उनकी जीवंत परंपराओं को दुनिया के सामने लाने का एक प्रयास है

जब हम इस मेले के रंगों, ध्वनियों और खुशबू में खो जाते हैं, तो हमें यह भी समझना चाहिए कि इन परंपराओं को सहेजना हमारी ज़िम्मेदारी है। राइका जनजाति और उनके ऊँटों की देखभाल करना सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत का सम्मान करना है। आइए, इस उत्सव का आनंद लें और साथ ही इस अनमोल धरोहर को बचाने के लिए अपना योगदान दें।

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