नई दिल्ली, 01 मार्च: दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) की पूर्व छात्र नेता शेहला राशिद के खिलाफ 2019 में कथित तौर पर सेना विरोधी ट्वीट करने के लिए देशद्रोह का मामला वापस लेने की पुलिस की याचिका स्वीकार कर ली।
शेहला राशिद के खिलाफ देशद्रोह मामला: 2019 में किए गए विवादित ट्वीट
शेहला राशिद पर आरोप था कि उसने 18 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर और भारतीय सेना के बारे में कई आपत्तिजनक और विवादित ट्वीट किए थे। इन ट्वीट्स में उसने भारतीय सेना पर कश्मीर के लोगों के खिलाफ अत्याचार करने का आरोप लगाया था। एक ट्वीट में उसने दावा किया था कि “सशस्त्र बल रात में घरों में घुस रहे हैं, लड़कों को उठा रहे हैं, घरों में तोड़फोड़ कर रहे हैं, जानबूझकर राशन फर्श पर फैला रहे हैं, चावल में तेल मिला रहे हैं,” और एक अन्य ट्वीट में लिखा था, “शोपियां में 4 लोगों को आर्मी कैंप में बुलाया गया और उनसे ‘पूछताछ’ (यातना) की गई।”
सेना द्वारा आरोपों का खंडन
शेहला के इन ट्वीट्स के बाद, भारतीय सेना ने आरोपों का खंडन किया और इन्हें पूरी तरह से झूठा बताया। इसके बावजूद, इन विवादास्पद ट्वीट्स के कारण दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने आईपीसी की धारा 124A (देशद्रोह), 153A (धार्मिक और जातीय आधार पर दुश्मनी फैलाना), 153 (सामाजिक अव्यवस्था पैदा करना), 504 (सार्वजनिक शांति भंग करने के लिए जानबूझकर अपमान) और 505 (सार्वजनिक अव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए भड़काऊ बयान) के तहत मामला दर्ज किया।
चरणबद्ध कार्रवाई और अभियोजन की मंजूरी
चार साल बाद, दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने अगस्त 2023 में शेहला के खिलाफ अभियोजन की मंजूरी दी। उपराज्यपाल कार्यालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया, “दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने जेएनयूएसयू की पूर्व उपाध्यक्ष और आइसा की सदस्य शेहला राशिद के खिलाफ अभियोजन की मंजूरी दी है, जिन्होंने भारतीय सेना के बारे में दो ट्वीट किए थे, जिनका उद्देश्य विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना और सद्भाव बनाए रखने के लिए हानिकारक कार्य करना था।”
शेहला राशिद की राजनीतिक पहचान
शेहला राशिद जेएनयू के प्रमुख छात्र नेताओं में से एक थीं और उन्होंने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध में दिल्ली में बड़े प्रदर्शन का नेतृत्व किया था। सीएए का उद्देश्य पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता देना था, जिन्हें धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था।
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