कालेसर ठठेरा समुदाय की कहानी: कालेसर की शांत और सुरम्य पहाड़ियों के बीच, जहाँ प्रकृति अपनी गोद में शांति और सादगी को समेटे बैठी है, एक छोटी सी बस्ती धीरे-धीरे अपने अस्तित्व की आखिरी लड़ाई लड़ रही है। यह बस्ती है ठठेरा समुदाय की—धातु-कला के वे पारखी, जिनकी हथौड़े की चोट कभी दूर-दूर तक गूँजती थी। अब वही कारीगरी और हुनर आधुनिक मशीनों और बदलते समय के थपेड़ों के सामने मुरझा रहा है।
कभी इस समुदाय का नाम दूर-दूर तक प्रसिद्ध था। राजा-महाराजाओं के दरबारों से लेकर आम घरों तक, उनके हाथों से बने तांबे, पीतल और कांसे के बर्तन हर रसोई की शोभा बढ़ाते थे। लेकिन आज, उनकी भट्ठियाँ ठंडी पड़ती जा रही हैं, और उनकी कला विलुप्ति के कगार पर है।
विभाजन की लकीरों में खोती पहचान: पाकिस्तान से कालेश्वर तक का सफर
ठठेरा समुदाय की जड़ें पाकिस्तान में हैं। विभाजन से पहले, ये कारीगर वर्तमान पाकिस्तान के विभिन्न हिस्सों में बसते थे, जहाँ उनका व्यवसाय फल-फूल रहा था। लेकिन 1947 का भारत-पाक विभाजन इनके जीवन में एक ऐसा तूफान लाया, जिसने इनके घर-परिवार, पहचान और भविष्य को छिन्न-भिन्न कर दिया। अपनी जन्मभूमि छोड़कर वे इस पार, भारत आ गए।
नए सिरे से बसने और अपनी कला को फिर से जीवंत करने की चुनौती थी। कालेश्वर की पहाड़ियों में इन्हें शरण मिली, और यहाँ उन्होंने अपनी भट्ठियाँ फिर से जलानी शुरू कीं। लेकिन अब हालात बदले हुए थे—पहले जहाँ इनका व्यवसाय राजाओं और सामंतों की छत्रछाया में फलता-फूलता था, वहीं अब मशीनों और सस्ते स्टील-एल्यूमीनियम के बर्तनों ने इनके हाथों से बनते ताम्र-पात्रों की माँग कम कर दी थी।
आज, इस समुदाय के कुछ ही घर बचे हैं। पाँच महीने तक वे अपनी कला में संलग्न रहते हैं, और बाकी के सात महीने उनकी आजीविका संघर्ष का रूप ले लेती है।
कालेसर के ठठेरा: जिनके हथौड़ों की गूंज सदियों तक सुनाई दी
ठठेरा कौन हैं?
ठठेरा वे कारीगर होते हैं, जो तांबे, कांसे और पीतल जैसी धातुओं को गढ़कर उन्हें नए रूप में ढालते हैं। इनकी कला केवल धातु को मोड़ने या पीटने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सदियों पुरानी तकनीकों, परंपराओं और रचनात्मकता का अद्भुत संगम है।
कालेसर के ठठेरों की विशेषता
1. मैन्युअल धातु-कला: ठठेरा समुदाय हथौड़ों और पारंपरिक भट्ठियों का उपयोग करता है, जो हर बर्तन को एक विशेष हस्तनिर्मित कृति बनाते हैं।
2. शुद्ध धातु के बर्तन: इनके बनाए तांबे और कांसे के बर्तन केवल सुंदरता में ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होते हैं।
3. कलात्मक डिज़ाइन: इनकी बनाई जटिल नक्काशी और डिजाइन आधुनिक मशीनों से बनी चीजों में दुर्लभ हैं।
बाजार में प्रतिस्पर्धा और आधुनिकता का प्रभाव
समय के साथ, मशीनीकरण और प्लास्टिक/स्टील के बर्तनों ने इस कला को हाशिए पर धकेल दिया है। अब लोग पारंपरिक ताम्र-पात्रों के बजाय सस्ते विकल्पों की ओर आकर्षित होते हैं, जिससे ठठेरा समुदाय की आजीविका प्रभावित हुई है।
द ट्राइबल कैनवस” – ठठेरा समुदाय की कहानी, जो हर भारतीय को जाननी चाहिए
क्या है “द ट्राइबल कैनवस”?
“द ट्राइबल कैनवस” गुरनीत कौर द्वारा डिज़ाइन किया गया एक विशेष डॉक्यूमेंट्री सीरीज़ है, जो भारत के हाशिए पर खड़े समुदायों की अनसुनी कहानियों को सामने लाने का प्रयास करता है।
इस शो का उद्देश्य सिर्फ कहानी सुनाना नहीं, बल्कि इन समुदायों के संघर्ष, उनकी विरासत और उनकी कला को एक नया मंच देना है।
क्यों देखें “द ट्राइबल कैनवस”?
- एक भूली-बिसरी विरासत को पुनर्जीवित करने का प्रयास
- भारतीय कारीगरों और उनके संघर्षों को समझने का अवसर
- संस्कृति, कला और समाज का अनूठा संगम
THE UNMUTE चैनल पर इस डॉक्यूमेंट्री को देखें और उन कहानियों को जानें, जो अब तक अनसुनी रही हैं।
संस्कृति का संरक्षण: हमारा कर्तव्य, हमारा दायित्व
आज, जब सब कुछ तेज़ी से बदल रहा है, हमें यह समझने की ज़रूरत है कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर केवल इमारतों और मंदिरों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उन कारीगरों में भी जीवित है, जिनकी उंगलियाँ कला को आकार देती हैं।
अगर ठठेरों जैसी पारंपरिक कलाएँ विलुप्त हो जाती हैं, तो हम सिर्फ एक समुदाय नहीं, बल्कि अपनी विरासत का एक अमूल्य हिस्सा खो देंगे।
क्या कर सकते हैं हम?
स्थानीय कारीगरों से उनके हाथों की बनी वस्तुएँ खरीदें।
सस्ती मशीन-निर्मित चीजों की बजाय, हस्तनिर्मित उत्पादों को अपनाएँ।
इस कला को पहचानें, सराहें और इसे जीवित रखने के प्रयास करें।
अंतिम शब्द: कालेसर ठठेरा समुदाय की कहानी, जो हर भारतीय को जाननी चाहिए
कालेसर के ठठेरा, जो कभी अपने हुनर और कला के लिए प्रसिद्ध थे, आज गुमनामी के अंधेरे में खो रहे हैं। यह केवल उनकी कहानी नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति के उन अनमोल रत्नों की भी है, जिनका अस्तित्व खतरे में है।
“द ट्राइबल कैनवस” जैसे शो इन समुदायों की कहानियों को जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन असली बदलाव तब आएगा जब हम स्वयं उनकी कला को महत्व देंगे, उसे अपनाएँगे और आगे बढ़ाएँगे।
तो आइए, इस यात्रा का हिस्सा बनें। UNMUTE चैनल पर “द ट्राइबल कैनवस” देखें और भारत की अनदेखी कहानियों को जानें।
संस्कृति केवल अतीत का हिस्सा नहीं, बल्कि भविष्य का भी आधार होती है। इसे बचाएँ, इसे अपनाएँ, इसे जीवित रखें।
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