जोधपुर, 23 जनवरी 2025: जोधपुर(Jodhpur) की एक अदालत ने हाल ही में लिव-इन रिलेशनशिप से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में फैसला सुनाया है। अदालत ने एक महिला द्वारा दायर की गई गुजारा भत्ता की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप को वैवाहिक संबंध का दर्जा नहीं दिया जा सकता, और इसलिए पति-पत्नी के अधिकार यहां लागू नहीं होते।
मामले का विवरण
महिला ने अदालत में याचिका दायर कर यह दावा किया कि वह कई वर्षों तक अपने साथी के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रही। उनके अलगाव के बाद उसने खुद को आर्थिक रूप से असहाय बताते हुए गुजारा भत्ता की मांग की। महिला ने दलील दी कि उसने अपना करियर और आर्थिक स्वतंत्रता छोड़कर अपने साथी के साथ रिश्ता निभाया।
अदालत का फैसला
अदालत ने महिला की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि भारतीय कानून में लिव-इन रिलेशनशिप को विवाह के समान मान्यता नहीं दी गई है। कोर्ट ने कहा कि विवाह और लिव-इन के बीच कानूनी और सामाजिक अंतर है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कुछ मामलों में लिव-इन पार्टनर्स को अधिकार देने की बात कही है, लेकिन यह विशेष परिस्थितियों में ही लागू होता है।
कानूनी पहलुओं पर जोर
अदालत ने यह भी कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप में महिलाओं के अधिकारों को लेकर जागरूकता जरूरी है। हालांकि, इस मामले में महिला यह साबित करने में असफल रही कि वह पूरी तरह से अपने साथी पर आर्थिक रूप से निर्भर थी।
निष्कर्ष
यह फैसला उन लोगों के लिए एक मिसाल है, जो लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं या इसे अपनाने की योजना बना रहे हैं। अदालत ने यह साफ कर दिया कि लिव-इन रिलेशनशिप को वैवाहिक अधिकार और कर्तव्यों का कानूनी आधार नहीं दिया जा सकता।यह मामला लिव-इन संबंधों से जुड़े कानूनी मुद्दों को समझने और उनके दायरे को स्पष्ट करने का काम करता है। साथ ही यह भी बताता है कि व्यक्तिगत संबंधों में आर्थिक और सामाजिक अधिकारों को लेकर जागरूकता होना कितना जरूरी है।
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